Tuesday 25 September 2012

Tuesday 24 April 2012

उपन्यास का अठारहवां पन्ना!


मदनसींग भी चला गया कश्मीर!

हसमुख ने....मदनसींग, जो उसकी पत्नी कोकिला का भूतपूर्व प्रेमी है....उसे कश्मीर न जाने किस काम से भेजा है!.....कश्मीर की लोकेशंस पर बहुत सी फिल्में बनी है!...मदन और कोकिला की छबी कुछ ऐसी नजर के सामने आ रही है....फिल्म 'कश्मीर की कली' के नायक और नायिका की तरह!

बेशक फोटो...गूगल से साभार ली गई है!...... 

उपन्यास 'कोकिला....' सराहा जा रहा है!....आगे की कड़ियाँ जल्दी जल्दी लिखने के लिए कई मित्रों की तरफ से कहा जा रहा है!...लेकिन सहज पके सो मीठा!...मेरी कलम अपनी मध्यम गति के साथ ही   प्रयाण कर रही है!...बहुत अच्छा लग रहा है कि मैं अकेली नहीं हूँ...मेरे साथ काफिला चल रहा है!....अगर काफिले साथ जुड कर आप भी मौज-मस्ती के साथ चलना चाहें, तो चले आइए!

लिंक आप के सामने है!
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/18-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Monday 23 April 2012

उपन्यास का सत्रहवां पन्ना!

हवा के साथ साथ....

पन्ने पलट्तें जा रहे है! 
तेज झोंके हवा के आ आ कर...
मेज पर पडी मेरी डायरी को
जोर जोर से हिला-डुला कर...
अपने संग कहीं दूर तक उड़ा कर....
ले जाने की कोशिश में है....
पर डायरी नहीं छोड़ रही अपनी जगह....
सिर्फ पन्ने पलटतें जा रहे है....

डायरी में लिखा हुआ है...
एक एक दिन का कारनामा...
किस से हुआ मिलना..
और किस से हुआ बिछडना...
किसी से किया हुआ वादा...
जब निभाया न गया....
तब और होना भी क्या था...
अच्छा ख़ासा मनमुटाव हुआ...
लिखा हुआ है आगे कि...
वे  नजरें फेर कर जा रहे है....
और पन्ने पलटतें जा रहे है!

हवाने कुछ जोर और लगाया....
अचानक से बीस पन्ने....
फडफडाहट के साथ पलट गए....
बहुत कुछ बदल गया था....
मेरे होठ कोई प्यारा सा गीत...
यूंही मस्ती में गुन -गुना रहे थे....
गीतों के बोल साफ़ नजर आ रहे है...
लेकिन पन्ने तो पलटतें जा रहे है!

पता नहीं ये कविता कैसी बन पडी है...लेकिन उपन्यास की कहानी बीस साल आगे निकल गई है!...किसी भी तरह की कोई बोरियत दिए बगैर....लिंक देखिए....


http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/17-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Saturday 21 April 2012

उपन्यास का सोलहवां पन्ना!

 उपन्यास 'कोकिला...' आगे बढ़ रहा है!

....यह उपन्यास पूर्व प्रकाशित नहीं है!...इस उपन्यास की खरीदारी के बारे में जानने के लिए मुझे कुछ इ-मेल प्राप्त हुए है!...उन्हें मैंने अलग से जवाब भेजा है!

...सभी की जानकारी के लिए यह बताना आवश्यक है कि यह उपन्यास nbt..(नवभारत-टाइम्स) के  मेरे ब्लॉग 'मुझे कुछ कहना है' ...पर से ही ऑन-लाइन प्रकाशित किया जा रहा है!...यहीं इसे पढ़ा जा सकता है!...फेसबुक पर भी इसका लिंक दिया जा रहा है!

आज के सोलहवे पन्ने का लिंक है......

http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/16-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Friday 20 April 2012

उपन्यास का पद्रहवां पन्ना!


...कल्पनाओं के पंखों पर सवार!


कविताओं में वर्णित अमावस की रात....
कुछ ज्यादा ही कालिख लिए होती है....
ऐसे में भूत-प्रेतों की कहानियाँ....
कुछ ज्यादा ही चित्त-वेधक होती है....

रात का सन्नाटा कुछ ज्यादा ही डरावना,
सन्नाटे को भंग करती निशाचरों की आवाजें...
तूफानी हवाओं का अचानक से आगमन....
पेड़ों का...पत्तों का विचित्रता से हिलना-डुलना...
एक कवि का हद से ज्यादा डर जाना....
बे-मौसम की बारिश का भी...
उसी समय,अचानक से आगमन...
बिजलियों का कडकना...
आश्रय की खोज में कवि...
डर कर इधर उधर भटकना....
कोई टूटा-फूटा पुराना घर....
आश्रय उसी घर में लेना....

फिर दरवाजा खुलने की चरमराहट...
खाली खँडहर नुमा घर में...
चम्-गिदडों के...
पंखों की फडफडाहट....
फिर कहीं किसी कमरे से आती....
छम..छम..छम...बजती...पायल की ध्वनी....
फिर एक बार...
कवि का हद से ज्यादा डर जाना...
कवि के दिल की बढ़ती धडकन...

और किसी सुन्दरी का....
हद से ज्यादा सुन्दर चेहरा...
शरीर नदारद....सिर्फ एक चेहरा....
कवि  पर छाया हुआ बेहोशी का आलम...
मृत्यु के नजदीक होनेका....
अनुभव लेता सहमासा मन....

कविता-कहानियों में....
अक्सर मिल जाता है,कुछ भी....
क्या कवि...क्या लेखक...
अपनी विचित्र-कल्पनाओं के चित्र....
कागज़ पर उतार देतें है...कभी, कभी!

...' कोकिला...' भी एक ऐसी ही कहानी है.....कपोल-कल्पित....( फोटो गूगल से साभार ली गई है)
लिंक देखें.....

http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/15-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Wednesday 18 April 2012

उपन्यास का चौदहवां पन्ना!


  टिप्पणियों की अहमियत....

टिप्पणियों की अहमियत बहुत बड़ी होती है...सभी ब्लोगर्स इस बात को भली भाँति जानते है!...आपसी प्रेम, सद्भावना और मित्रता बढाने में टिप्पणियाँ अहम भूमिका निभाती है!...लिखी गई पोस्ट को पढ़े जाने का प्रमाण भी टिप्पणी द्वारा ही मिलता है!...टिप्पणी लेखक की हाजरी का प्रमाण भी टिप्पणी से ही ब्लॉग लेखक को मिल जाता है!...टिप्पणी की सबसे बड़ी उपयोगिता तो तब नजर आती है,जब यह प्रेरणादायी साबित होती है याने कि ब्लॉग लेखक को अविरत लिखते रहने के लिए प्रेरित करती है!

.....लेकिन कुछ टिप्पणीकार अपने टिप्पणी देने के अधिकार का दुरुपयोग भी करते है!...ब्लॉग लेखक की निंदा या बुराई करने से कतराते नहीं है!...अभद्र भाषा का प्रयोग भी बिना सोचे-समझे करते है!...अगर उन्हें ब्लॉग का विषय पसंद नहीं है तो टिप्पणी में सिर्फ ' ना- पसंद' लिख कर अपने विचारों को व्यक्ति दे सकते है!...वैसे ना-पसंद ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणी देने की जरुरत ही क्या है?

...और एक बात ब्लॉग लेखकों के लिए....अगर टिप्पणियाँ कम मिलती है तो घबराने की या ब्लॉग लिखना बंद करने की जरुरत नहीं है!...वैसे ही किसी गलत टिप्पणी के मिलते...मायूस या दु:खी होने की जरुरत भी नहीं है!...यहाँ ब्लॉग पोस्ट कमाई के नहीं लिखे जाते और टिप्पणियाँ भी कमाई का जरिया नहीं है!....तो चिंता किस बात की!

....किसी ब्लॉगर को ज्यादा टिप्पणियाँ मिलती है तो उस ब्लॉगर से जलन या वैर भाव मन में पालना, बचकानी हरकत है!...हो सकता है कि वह ज्यादा मेहनती और मिलनसार स्वभाव का हो और इसी वजह से उसके मित्रों की संख्या भी बड़ी हो!....उस जैसा बनने की कोशिश आप भी कर सकते है!

..यह समझना भी ठीक नहीं है कि आप को इसलिए टिप्पणियाँ कम मिल रही है...क्यों कि आप का लेखन स्तरीय नहीं है!...ऐसा सोचना आप के अंदर हीन भावना पैदा कर सकता है और आपके लेखन पर या आपकी रचनात्मकता पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है!.....तो उठाइए कंप्यूटर में इस्तेमाल होने वाली कलम और लिखिए ब्लॉग पोस्ट!....हाँ!...टिप्पणियों द्वारा भी आप अपनी क्रिएटिविटी जता सकते है!

नोट....इस ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणी देना या न देना आप की इच्छा पर निर्भर है!....'कंपलसरी' नहीं है!

उपन्यास ' कोकिला...' बिना किसी बाधा के आगे बढ़ रहा है!...कोशिश यही है कि कहानी में आखिर तक रहस्य और रोचकता बनी रहे!

लिंक..... http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/14-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Monday 16 April 2012

उपन्यास का तेरहवां पन्ना!


अंध-विश्वास...
और हम!

....आज उपन्यास का तेरहवां पन्ना प्रस्तुत करते हुए...सहज ही मन में ख्याल आया कि विदेशों में 13 का अंक अशुभ या' अन-लकी' माना जाता है!...हमारे देश में भी अंध-विश्वास का अन्धेरा प्रचुर मात्रा में छाया हुआ है!...पढ़े-लिखे क्या...अनपढ़ क्या...सभी तरह के लोग इस अंधकार की छाया में आँखे बंद  कर के सांस ले रहे है!...

....शायद भविष्य में घटित होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं के बारे में पहले से जान न पाने की वजह से लोगों के मन में डर पैदा हुआ...और इसी डर ने अंध-विश्वास को जन्म दिया!  कुछ चालाक या ठग किस्म के लोगों ने आम लोगों की इसी मानसिकता या डर की भावना का फायदा उठाया...और इस कड़ी को आगे  बढातें  गए!...इन ठगों ने स्वयं को त्रिकाल-ज्ञानी के तौर पर प्रदर्शित किया और भविष्य के गर्भ में छिपी हुई घटनाओं की जानकारी रखने का दावा पेश किया!....लोगों को कथित या सही दु:ख-दर्द और संकटों से मुक्ति दिलवाने का नेक काम ऐसे ठग लोग करने लगे! ...ऐसे ही लोग 'बाबा' के नाम से जाने और पूजे जाने लगे!...जाहिर है कि भगवान या दैवी शक्ति के नाम पर धन भी इन बाबाओं ने  ऐंठना शुरू किया!....अब आधुनिक बाबाओं ने भगवान और दैवी शक्ति के साथ साथ सायंस को भी जोड़ दिया है!...जिससे  कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को विश्वास में लिया जा सकें!

खैर!..कुछ लोग ऐसे भी है जो इस अंध-विश्वास रूपी अन्धकार से घिरे हुओं को बाहर निकाल कर, बंद आँखें खोलने की सलाह दे रहे है....उजाले की और देखने के लिए प्रेरित भी कर रहे है!...बाबाओं की असलियत भी सामने आ रही है!...लेकिन जहाँ एक बाबा की पोल खुल जाती है....वहाँ दूसरे बाबा जगह लेते जा रहे है!....विशाल देश भारत की इतनी बड़ी जन संख्या है...तो जाहिर है कि बाबाओं की तादाद भी उतनी ही बड़ी होगी!

....लोग बाग अगर चाहें तो खुद ही ऐसे ठग बाबाओं की दुकानदारी बंद करवा सकते है...लेकिन इसके लिए सबसे पहले उन्हें अंध-विश्वास का त्याग करना पडेगा!

( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)

....उपन्यास 'कोकिला...' की कहानी आगे बढ़ रही है.....
 http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/13-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8


Saturday 14 April 2012

उपन्यास का बारहवा पन्ना!

हसमुख और कोकिला..बिना मंगनी, पट व्याह!


उपन्यास की कहानी तेज गती से आगे सरकती जा रही है....हसमुख ने मदनसींग को पैसों की ताकत से पछाड़ दिया...कोकिला के जीवन से ऐसे बाहर कर दिया कि लाठी भी नहीं टूटी और सांप भी मर गया!...अरे!..कोकिला खुद ही हसमुख के साथ शादी करने के लिए राजी हो गई!....लेकिन यह शादी जबरदस्ती की है....ऐसा हमारा मानना है!

....गत पोस्ट में जैसी कि हमने सलाह दी थी...सोचने सोचने में ज्यादा समय नहीं गंवाना चाहिए!....सबसे पहले हसमुख ने ही हमारी सलाह मान ली और झट से कोकिला का हाथ पकड़ लिया!....क्या पता कहीं मदनसींग एकदम से आ धमका तो सारे किए-कराए पर पानी ना फिर जाए!

...कहते है कि शादियाँ उपर से तय हो कर आती है!...चलो मान लेते है....लेकिन उपर किसकी कितनी शादियाँ होनी तय  हुई है....ये कौन जानता है?...जैसे कि कोकिला की यह दूसरी शादी है...और जीवन में तीन पुरुष स्थान ग्रहण कर चुके है....

....फिर भी कोकिला निर्दोष है, निष्पाप है....किस्मत की मारी भी है और किस्मत की धनी भी है....चलिए!...शादी तो आखिर एक पवित्र बंधन है....शादी मुबारक हो हसमुख- कोकिला!

( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)

...कैसे?....लिंक देखें....
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/12-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Thursday 12 April 2012

उपन्यास का ग्यारहवा पन्ना!

सोचने,सोचने में ही कहीं...समय न निकल जाए!



                                    ( फोटो गूगल से साभार ली है)

कहते है कि...हर काम सोच-समझ कर ही करना चाहिए!...वरना लेने के देने पड़ जाते है!....यह उपदेश कैसा लगा आपको?...मुझे तो सही जान पड़ता है...लेकिन...

....यह उपदेश ग्रहण करने में कुछ दिक्कतें आ रही है!....उपदेश प्रचारित करने वाले ने इसके लिए समय की मर्यादा पेश की नहीं है!...किसी काम को करने या ना करने  का निर्णय लेने में कितना समय व्यय करना चाहिए...इसकी शिक्षा हमें कोई नहीं दे रहा!...यह तो स्वयं ही तय करना है!

...सुधीर को मुंबई से बहुत अच्छे जॉब का ऑफर आया है !...वह अच्छे जॉब की तलाश में भी है!...ऐसे में वह सोचने लगा कि 'मुंबई वाला जॉब अच्छा तो है लेकिन मुझे इससे अच्छा जॉब मिल सकता है...मेरी योग्यता तो बहुत ज्यादा है!....तो मुझे क्या करना चाहिए...'हाँ' या 'ना'?'

...सुधीर अपने घरवालों के साथ मशवरा करता है!...कोई 'हाँ' कह रहा है...तो कोई कह रहा है 'इंतज़ार कर!..तुझे इससे बेहतर जॉब मिल सकता है!'

...सुधीर अपने दोस्तों से पूछ रहा है....यहाँ भी सभी की राय अलग अलग है!....सुधीर सभी की राय लेता हुआ आखिर इस नतीजे पर पहुँच जाता है कि फिलहाल यह जॉब ज्वाइन कर लेना चाहिए!

.....लेकिन जब वह अपनी स्वीकृति भेज देता है....समय अपनी गति से आगे बढ़ चुका होता है...और सुधीर को अब जवाब मिलता है' सौरी!...आपने देर कर दी....हमें इस जॉब के लिए लायक उम्मीदवार मिल चुका है!'...और सुधीर को सिर पकड़कर बैठना पड़ जाता है!....बहुत ज्यादा सोचने की कीमत उसे चुकानी पड़ती है!

....ऐसा सुधीर के साथ ही नहीं...बहुतों के साथ होता है!...कई मामलों में निर्णय लेने में देरी लगाने से, हाथ मल कर बैठ जाना पड़ता है!

....सोचने, सोचने में इतनी देर न लगाएं कि मौक़ा हाथ से  निकल जाए!....मौक़ा निकल जाने के बाद पता चलता है कि 'कितना सुनहरी मौक़ा था!'

.....शादी के मामलों में कई लड़के औए लडकियां अच्छा जीवनसाथी पाने से सिर्फ इसी वजह से वंचित रह गए कि....सोचने सोचने में ही उन्होंने बहुत समय व्यर्थ किया!...जब बहुत समय बाद ये लोग किसी निर्णय तक पहुंचें....उनका साथी किसी और का दामन थाम चुका था!

.....सोच-समझ कर काम करना या निर्णय लेना अच्छी बात है....लेकिन समय का ध्यान अवश्य रखें...समय आपका ध्यान नहीं रखेगा!

...'कोकिला...' उपन्यास आगे बढ़ रहा है....समय के साथ ही चल रहा है!
लिंक देखिए..... 
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/11-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Monday 9 April 2012

उपन्यास का दसवा पन्ना!

आज मैं दस नंबरी!...( हंसा वो फंसा)


                                                    ( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)
...घबराइए मत!...अपने आप को मैं कुछ भी कह सकती हूँ!....भड़ास ही निकालनी है तो...चोर, उचक्की, बदमाश, पागल, सिर-फिरी,फफ्फे-कुट्टी....वैसे फफ्फे-कुट्टी का मतलब मुझे भी सही मायने में मालूम नहीं है!...पंजाबी जुमला है!...कोई जानता है तो बता सकता है!...

....वैसे मराठी में एक जुमला है...आगलावी!....मतलब कि आग लगाने वाली!...समझने वाली बात है कि एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के बारे में बताई हुई खुफिया बात....सुनने वाला, जा कर उस दूसरे व्यक्ति को नमक-मिर्च लगा कर बताता है...तो वह दूसरा व्यक्ति भड़क उठता है! ...वह पहले वाले व्यक्ति के साथ झगडा या मार-पिटाई करने पर उतर आता है ...तो पहले और दूसरे व्यक्ति के बीच झगडे करवाना आग लगाना ही तो हुआ!....'आगलावी' स्त्री के लिए संबोधन है और पुरुष को 'आगलाव्या' कहते है! ....नहीं समझे?...मुझे समझाना भी कुछ कम ही आता है ...तो अपने आप को अकल-मंद कहना ठीक नहीं होगा...अकल-मंद का मतलब जिसके भेजे में प्रचुर मात्रा में अकल भरी हुई होती है ....वो तो मैं हूँ नहीं!....तो अकल-बंद?...यह चल जाएगा! वैसे...कम-अकल तो कह ही सकती हूँ....बे-अकल कहना भी सही है!

....वैसे अपने आप को...बन्दर, कुत्ता, गधा, घोड़ा, बकरा, उल्लू,उल्लू का पठ्ठा,खच्चर...वगैरा कहना जायज है!...बे-इज्जती तो तब होगी जब दूसरा कहेगा!...बुरा भी मैं तब मानूंगी जब दूसरा यह सब मुझे कहेगा!


....आज किसी बात को ले कर अपने आप पर ही गुस्सा आ रहा है तो मैं क्या करू?...यह सब अपने लिए कहने में शरम् कैसी?....जो डरा वो मरा!...तो फिल-हाल मरने का इरादा नहीं है अपना!..इसलिए बोल्ड बन कर...निडर बन कर....यह सारे बे-बाक संबोधन मेरे अपने लिए है!

दस नंबर के पन्ने पर उपन्यास.." कोकिला..." अपनी जगह सही कूच कर रहा है!....हसमुख कोकिला के (जीवन में) 'इन' हो रहा है और मदनसींग 'आउट' हो रहा है!...इसमें मेरी और से कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है!...जिसकी लाठी, उसकी भैस होती है बाबा! 

....अगर आप गुस्से में नहीं है, तो लिंक देख सकते है....

http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/10-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Friday 6 April 2012

उपन्यास का नववा पन्ना!

....कैसी कैसी चालें चलतें है लोग!

.....कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना, दूसरों के बीच मनमुटाव पैदा करना, घूंस देना.....साम, दाम, दंड और भेद का प्रयोग करना!....और न जाने क्या क्या चाले चलते है!

स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर ऐसे लोग जश्न मनाते है और किसी नए स्वार्थ को सिद्ध करने का जुगाड बनाने में लिप्त हो जाते है!....बहुत कम लोग ऐसे होते है जो स्वार्थ सिद्ध हो जाने के बाद पश्चाताप की आग में जलते है...और शपथ लेते है कि स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जीवन में फिर कभी गलत काम नहीं करूँगा या करूंगी!

....स्वार्थ सिद्ध न होने पर...अपने द्वारा किए गए बुरे कर्मों पर पछताने वाले लोग बहुत कम होते है!...ज्यादातर तो दुबारा कमर कस कर अगली चाल चलने के लिए तैयार हो जाते है!....कई बार ऐसे लोग इतनी नीचता पर उतर आते है कि अपनी या किसी और की जान पर खेलने से भी हिचकिचाते नहीं है!

.....बेशक स्वार्थ भी मनुष्य स्वभाव का एक अंग है!.....'अपना भला हो...' यह इच्छा तो हर किसी के मन में मौजूद होती ही है!....देखा जाए तो साधु-महात्मा भी ईश्वर की भक्ति अपने स्वार्थ के लिए ही करते है!...मोक्षप्राप्ति या ईश्वर प्राप्ति की इच्छा करना स्वार्थ का ही एक स्वरूप है!

......तो स्वार्थ ऐसा होना चाहिए कि जिससे बेशक अपना भला हो...लेकिन किसी को कोई नुससान न पहुंचें!...परिक्षा में अच्छे अंक लाना भले ही स्वार्थ हो....लेकिन उस स्वार्थ को साधने के लिए कड़ी मेहनत को प्रयोग में लाना ही उचित है.....परिक्षामें कॉपी करना, रिश्वत ऑफर करना, प्रश्न-पेपर हासिल करना,अपनी जगह किसी और को परीक्षा में बैठाना या किसी नेता की सिफारिश का सहारा लेना....स्वार्थ सिद्धि के गलत तरीके है!....नौकरी पाने के लिए भी गलत तरीके अपनाने से बाज आना चाहिए!

....'कोकिला... की कहानी आगे बढ़ रही है....हसमुख कोकिला का प्यार पाना चाहता है ...लेकिन उसके लिए गलत चाल चलने जा रहा है....

                                     (फोटो गूगल से साभार ली है!)

लिंक है http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/9-%E0%A4%95-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C-%E0%A4%AC%E0%A4%A8-%E0%A4%97%E0%A4%88-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%A8-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B8

Tuesday 3 April 2012

चुटकुला!...हिन्दी लेखकों के लिए खास!




मेरी बे-इज्जती कभी नहीं हुई!

...एक बार एक रेलवे-स्टेशन पर दो सेल्समैन एक ही बेंच पर बैठ कर ट्रेन के आने का इंतज़ार कर रहे थे!....एक इस काम के लिए नया नया था...युवां था!...और दूसरा कई सालों से इसी काम को कर रहा था!...बुजुर्ग था!...दोनों का काम लोगों से संपर्क कर के माल बेचने का था!

...बाते चल पडी... युवां सेल्समैन कहने लगा....

" अंकल!...सेल्समैन का जॉब कोई अच्छा जॉब नहीं है....कैसे कैसे लोगों से पाला पड़ता है!....चीज-वस्तु खरीदते तो नहीं है...उपरसे गाली-गलौज करते है ...भला बुरा कहते है....मुंह फेर कर निकल जाते है!...जिंदगी में मैंने कभी इतनी बे-इज्जती सहन नहीं की!"

...इस पर बुजुर्ग सेल्समैन बोला....

" वैसे तुम सही कह रहे हो...इतने सालों में मेरे साथ भी बहुत कुछ हुआ!...कई लोगों ने मुझे देख कर दरवाजे बंद कर लिए!.....चौकीदार को बुला कर मुझे बाहर निकलवा दिया...एक आदमी तो इतना गुस्सैल निकला कि जैसे मैंने अपने माल के बारे में बोलना शुरू किया ...उसने मुझे उठा कर गेट से बाहर फैंक दिया!...लेकिन बरखुरदार!.....मेरी बे-इज्जती तो कभी नहीं हुई!"


.....अब इस चुटकुले के बारे में मेरी राय! ....यह चुटकुला सुन कर मुझे लगा कि यहाँ दो सेल्समैन की जगह,हिन्दी में लिखने वाले दो लेखक होते.... तो भी चुटकुला इतना ही मजेदार बना रहता!...

....हिन्दी लेखक बुजुर्ग सेल्समैन की तरह है! वह कभी नहीं मानेगा कि उसकी कभी बे-इज्जती भी हुई है!...चाहे सरकार की तरफ से हिन्दी लेखक का सन्मान न किया जाए...या सन्मान के नाम पर एक शाल, श्रीफल और दो-चार हजार रुपयों का चेक पकडाया जाए...वह खुश हो जाता है!...हिन्दी  के मुकाबले अंग्रेजी को कई गुना ज्यादा अहमियत मिले....इसे हिन्दी भाषी लेखक अपना अपमान नहीं समझता!..हिन्दी के कई लेखकों की किताबें उनकी मृत्यु के बाद समाज में प्रचारित की जाती है....इस पर  हिन्दी लेखकों को कोई आपत्ति नहीं है!



( फोटो गूगल से साभार ली है!)

उपन्यास का आठवा पन्ना...






कहानी में ' प्रणय-त्रिकोण'




....आज यहाँ सिर्फ और सिर्फ इस उपन्यास में वर्णित प्रेम कहानी की ही चर्चा करेंगे!...यहाँ एक प्रेमिका कोकिला और उसके दो प्रेमी..मदनसींग और हसमुख....मिल कर प्रणय त्रिकोण की रचना कर रहे है!...उपन्यास की कहानी जानने के लिए आपको नीचे दिए गए लिंक पर जाना ही पडेगा...अन्यथा मजा नहीं आएगा!


अगला पन्ना, खुला उपन्यास का...
दोस्तों!...आगे बढ़ चली कहानी....
सुन्दर नारी कोकिला...
उसकी अंगडाई लेती जवानी.....

चाहने लगी वह मदनसींग को....
जो उसे जान से भी प्यारा ...
मदन भी दीवाना कोकिला का...
उसने भी है दिल हारा....


प्रेमी प्रेमिका दोनों खुश है....
मानो पंछी विशाल नभ के....
सुध-बुध खोए रहते हरदम...
जैसे विरले प्राणी जग के....


साथ चलेंगे जीवन पथ पर....
कसमें दोनों ने है खाई....
‘देख रही हूँ...प्यार तुम्हारा!...’
नियति मन ही मन मुसकाई!


दो दिलों को जुदा करने....
छीनने उनका परम सुख....
पहुँच गया एक तीसरा प्रेमी....
जिसका नाम है हँसमुख!

हँसमुख का भी प्यार...
बरसने लगा कोकिला के अंग अंग पर!
दूर रहने की कवायद करती रह गई बेचारी....
देखें!....कब तक रहती है बच कर!


प्रणय जब धर लेता है...
त्रिकोण का संगीन आकार...
एक कोना मिटा देता है अपनी हस्ती....
...और मान लेता है हार!

कौन जाने मदनसींग हारा...
या हार गया हँसमुख !
ये तो भाग्य-विधाती, नियति ही जाने...
कोकिला को दु:ख मिलेगा या सुख!


( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)

लिंक देखें....


Saturday 31 March 2012

उपन्यास का सातवा पन्ना!






जीवन- सफर में पति का साथ कितना जरूरी!



( फोटो गूगल से साभार ली है!)


शादी तो आपने कर ली...लेकिन आपकी पत्नी या पति आपका साथ अगर नहीं देते, तो शादी का मतलब क्या हुआ? लगभग २० साल पहले की एक घटना की...याद आज ताजा हो रही है!..यह हकीकत है...कहानी मत समझ लेना...


तो हुआ ऐसा कि मेरे सामने वाले फ़्लैट में रहने वाली एक महिला बिमला ने... पता नहीं कैसे और कब...मेरा एक स्टील का सुन्दर गिलास चुरा लिया!...गिलास बहुत सुन्दर डिझाइन का था!...मुझे बर्तन गिन कर रखने की आदत तो है नहीं....लेकिन एक दिन शाम के समय जब उस महिला का पांच साल का बेटा हाथ में गिलास ले कर पानी पिता हुआ बाहर बारामदे में आया...तब मै भी संयोग से बारामदे में ही खड़ी थी...और पति इंतज़ार कर रही थी...जो उस समय ऑफिस से घर आने वाले थे!.....मेरी नजर उस गिलास पर पडी और मैंने पहचान लिया कि यह गिलास मेरा ही है!

....फिर भी मैं उलटे पाँव अपनी रसोई में गई और तसल्ली कर कर ली कि मेरा गिलास गायब है!...अब मै वापस बारामदे में आई वही खड़े पड़ोसन के बेटे से प्यार से बोली..." बेटे ज़रा अपना गिलास दिखाना!" बेटे ने तुरंत गिलास मेरे हाथ पकडाया...मैंने गिलास के उलटी तरफ तलवे पर खुदा हुआ नाम देखा....पी आर. लिखा हुआ था...जो जबरदस्ती मिटाकर उसीके उपर विमला भटेजा खुदा हुआ था!...और गिलास मेरे हाथ में ही था कि पड़ोसन दनदनाती हुई आई और पूछने लगी..." क्या देख रही हो मिसेस कपूर...ये गिलास आपका नहीं, हमारा है!"

...मैं भी जोर दे कर बोली" यह गिलास मेरा है...लेकिन आप के पास कैसे आ गया?"

...." अरे वाह!...क्या बात करती हो?....यह नया गिलास मैंने हप्ता पहले बर्तन वाली को पुराने कपडे दे कर लिया है...नाम भी मेरा लिखा हुआ है..विमला भटेजा!"


....इतने में मेरे पति आ गए....विमला के भी पति आ पहुंचे और देखने लगे कि क्या चल रहा है!.....

...अब मेरे से रहा नहीं गया...मैं घर के अंदर गई और अंदर से वैसे पांच गिलास उठा कर लाई!...मेरे पास छह गिलास का सेट था!.... सभी गिलासों के तलवे में उलटी तरफ पी.आर लिखा हुआ था!...अब साबित हो गया कि वह गिलास मेरा ही था और पड़ोसन विमला ने उसे पार कर लिया था...साथ में अपना नाम भी उस पर खुदवा लिया था!

...अब चोरी साबित होने पर बिमला जोर जोर से चिल्ला कर अपने आप को सच्ची साबित करने में लग गई!...मैंने अपना गिलास अपने कब्जे में कर लिया था!

...अब उसके पतिदेव उसकी सहायता में आगे आए और मुझे और मेरे पति को बिनती करने लगे कि...


" प्लीज...आप लोग चले जाइए...बिमला का बी.पी.हाई रहता है...पता नहीं यह कैसे हो गया!...वैसे वह बहुत अच्छी है...लेकिन कभी कभी तो गलतियाँ सभी करते है न?...है न भाई साहब?.. ..है न भाभी जी?..अगर गुस्से के मारे उसे कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगा?...प्लीज...अब कुछ मत कहिए...सब कुछ भूल जाइए!"


...हम चुप-चाप अपने घर में दाखिल हो गए और विमला के पतिदेव उसे उनके घर के अंदर ले गए!....


...बाद में मुझे लगा कि वह गलत होते हुए भी उसके पति ने उसका साथ दिया!...उसे हमारे सामने शर्मिंदगी उठाने नहीं दी!....बिमला का बी.पी. हाई होना एक बहाना था! ....पत्नियां तो पति सही हो या गलत....उसका साथ देती ही है!...लेकिन ऐसे कितने पति होते है जो गलत होते हुए भी पत्नी का साथ देते है?.....ऐसे में ज्यादातर पति तो कोर्ट कचहरी का ही माहौल खडा कर देते है और पत्नी गलत या उसके साथ बहस करने वाला गलत....इसकी उधेड़- बुन में लग जाते है!....मतलब कि-सच झूठ को परखने में लग जाते है!...अगर आप पत्नी से अपेक्षा करते है कि वह आप का साथ दे...तो क्या पत्नी यही अपेक्षा नहीं कर सकती?...सही गलत का फैसला तो बाद की बात है!

...अब उपन्यास पर नजर डालें तो कोकिला का पति उसका साथ छोड़ गया है...कोकिला विधवा है!

लिंक देखिए...

Wednesday 28 March 2012

उपन्यास का छठा पन्ना....


सुबकता बचपन...





उपन्यास 'कोकिला।..जो बन गई क्लोन!' की कहानी आगे बढ़ रही है....कोकिला है तो एक भारतीय नारी!...उपर से गरीब माँ-बाप के घर जन्मी बेटी!...छह भाई-बहनों में सबसे बड़ी....और जिसकी माँ हंमेशा बीमार ही रहती हो ....बचपन में कितनी जिम्मेदारियां निभा रही थी बेचारी !


शादी सोलह साल की छोटी उम्र में ही हो गई!...पति उदयसींग को ही प्रेमी मान कर जीवन पथ पर चलना शुरू किया!...संजोग देखिए....पति प्यार करने वाला और धनवान मिला!..हनीमून के लिए मुंबई भी ले गया....वाह!...कोकिला समझ रही थी कि उसके दिन फिर गए...अब सारे दु:ख पीछे छूट गए.....लेकिन कहानी यहाँ खतम नहीं हुई!


...वह हसमुख जी के यहाँ कैसे पहुँच गई?.....हसमुख जी कैसे उसके प्यार में पागल हो गए?...और कोकिला की बात करें तो वह हसमुख जी के ड्राइवर मदनसींग के प्यार में गिरफ्तार हो चुकी थी!...लेकिन हसमुख जी की प्यार के पागलपन में होने वाली ज्यादतियां भी झेल रही थी?...आखिर क्यों?


...असल में कोकिला वक्त की मार झेल रही है....भारतीय नारी है....चुप रह कर दर्द सहना ही उसकी नियति है !...



बचपन कब साथ छोड़ गया.....

जवानी ने कब दामन थाम लिया....

पता न चला उसे...

टूट कर चाहा जिसे...

बदले में उसने क्या दिया....



उजाला भर दिया उसने...

हर महफ़िल में...

चलाती गई ...

अपनी मीठी आवाज का सिलसिला...

पर उसे तो रोशनी के परदे में छिपा...

काला अंधकार ही मिला....

अरे!....जब कुदरत ने ही काला रंग बक्शा ...

उसे तो बनना ही था कोकिला!


{ फोटो गूगल से साभार ली गई है}




लिंक देखें...


Saturday 24 March 2012

उपन्यास का पांचवा पन्ना!




उपन्यास का पांचवा पन्ना!








आज ही अखबार में पढ़ा कि लोग संयुक्त परिवार में रहना पसंद करने लगे है!...एकल परिवार का चलन अपनाकर अलग हो चुके बहू-बेटे अब फिर वापस अपने बड़े बुजुर्गो के साथ रहने के लिए वापस आ रहे है!...खबर अच्छी है!...इसका कारण बताते हुए समाज शास्त्री कहते है कि महंगाई इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है!...हर चीज-वस्तु के भाव बढ़ गए है!...खर्चे पूरे नहीं हो रहे! पति-पत्नी दोनों को कमाई के लिए घर से बाहर निकालना पड़ता है!....रिहाइशी मकानों की कीमते आसमान छू रही है!...बच्चों के स्कूल की फीस ने नाक में दम कर रखा है!...बच्चे माता-पिता के समयाभाव की पूर्ति, दादा-दादी के साथ समय गुजार कर करना चाहते है!....ऐसे में संयुक्त परिवार में रहना कुछ राहत दिलवाता है!



.....समाज शास्त्री सही कह रहे है लेकिन मैंने निजी तौर पर भी इसके पीछे का एक और बड़ा कारण देखा है!....समाज में बदलाव आ चुका है!..आज कल की सासू माँए पहले की सासू माँए रही नहीं है!...बहुओं को हर बात में रोकने-टोकने वाली और डांट डपट कर चुप रहने को मजबूर करने वाली सासू-माँए आज बहुत कम रह गई है!..सास- बहू का रिश्ता मित्रवत बनता जा रहा है!...आज की सासे बहू ने क्या पहना, क्या खाया, कितने बजे गई, कितने बजे आई...इन बातों पर अपना ध्यान नहीं लगाती!...काम के मामले में भी बहू ने जितना भी और जैसा भी काम कर लिया हो उसे स्वीकृति देती है!...देखा तो यहाँ तक गया है कि एक ही किचन में सास अपनी पसंद का खाना बनाती है और बहू अपनी पसंद का बना लेती है!...लड़ाई-झगडे और मनमुटाव जितने टाले जा सकते है, उतने टालने की कोशिश सास और बहू दोनों ही करती है.....क्या यह परिवार को जोड़ कर रखने का शुभ संकेत नहीं है?



...लेकिन सास-बहू के आपसी समझौतों के बावजूद पति-पत्नी में आपसी सामंजस्य कम होता जा रहा है!...इस वजह से तलाक के मामले बढते जा रहे है!...परिणाम तया परिवार टूटते जा रहे है!...



खैर!...समाज में पति-पत्नी के रिश्ते में भी मधुरता आ ही जाएगी ऐसी आशा हम करते है!



...उपन्यास के पांचवे पन्ने के खुलने पर, सास-बहू ही आपका स्वागत करती मिलेगी!

( फोटो गूगल से साभार ली गई है!)

लिंक देखिए....



Thursday 22 March 2012

उपन्यास का चौथा पन्ना.....




उपन्यास का चौथा पन्ना.....

कोकिला के पति हसमुख जी....
न जाने क्यों परेशान है...
डॉ. तेजेन्द्र की बे-सिर पैर की...
बातों से हैरान है....
वैसे तो ये है गुजराती रसिया...
मोटे सेठ है...धनवान है!
कोकिला की चिंता भी इन्हें है....
न जाने क्यों...वह अब तक जवान है!
उससे प्यार भी करते है....
टूट के चाहते है उसे.....
उनके लिए तो वह जान है!
पर विश्वास नहीं ये करते किसी पर....
पत्नी हो या...हो ड्राइवर....
बेचारे शक्की है....नादान है!
जवान बेटा भावेश भी ...
नालायक है इनके लिए....
जैसे कि दुनिया में इनके जैसा कोई नहीं...
यही अकेले....पहुंचे हुए...महान है!
नीचे दिए गए लिंक पर चले जाइए....
हर तीसरे दिन खुलेगा नया पन्ना....
उपन्यास दिया जा रहा है यहाँ....
शौक से पढते जाइए...
यह काम बहुत ही आसान है!


Monday 19 March 2012

उपन्यास का तीसरा पन्ना!





उपन्यास का तीसरा पन्ना...




उपन्यास बढ़ रहा है आगे आगे....

'कोकिला!...जो बन गई क्लोन'...अरे वाह!

आज आए है जानकारी में...

कोकिला के पति हसमुख भाई शाह!



बैठे है सामने वे डॉक्टर तेजेन्द्र के....

सुना रहे अपनी बीमारी की राम कथा....

पर तेजेन्द्र ने जब पूछा....

'कैसी है मेरी कोकिला?'

उसी क्षण से बढ़ गई हसमुख भाई की व्यथा...


कोकिला का जन्म दिन जब....

तेजेन्द्र ने 6 मार्च बतलाया....

'नहीं!...डॉक्टर!...नहीं'...कहते हुए...

हसमुख जी का जी घबराया....


आपकी पत्नी के बारे में

जब पर पुरुष अधिक जानता हो...

चिंता से ग्रस्त तो होगा ही वह पति....

चाहे कितना भी पुख्ता हो....


कहानी ऐसे ही मनोरंजक ढंग से....

आगे बढ़ती जा रही है....

आगे खुलने वाली परतों में भी....

अजब-गजब की जानकारियाँ....

लौट-ऑफ छिपी हुई है!



( फोटो गूगल से साभार ली हुई है!)













Friday 16 March 2012

उपन्यास का दूसरा पन्ना....

उपन्यास का दूसरा पन्ना....

खुल गया...खुल गया....
उपन्यास का दूसरा पन्ना भी खुल गया...
उपन्यास का नाम रखा है हमने
'कोकिला !..जब बन गई क्लोन...'
शुरुआत में ही क्लोन बनाने वाला डॉक्टर....
वही लंदन वाला ...सामने आ गया...

तेजेन्द्र देसाई नाम उस डॉक्टर का...
डॉक्टर रॉबर्ट से दोस्ती कर लेता है...
बिल्ली-चूहों के क्लोन बनाते बनाते....
मानव क्लोन भी बना डालता है.....
बड़ी मेहनत करके बेचारा थक गया....
हाथ कुछ न आया उसके.....
सारा क्रेडिट रॉबर्ट ले गया....

उपन्यास मेरा नहीं...जो पढेगा उसका हो गया....
नवभारत टाइम्स ऑनलाइन ने छापा तो क्या....
हिन्दी भाषा हमारी माँ .....
उसी को समर्पित किया गया....
पढ़ने लिए इस उपन्यास को....
नीचे दिए लिंक पर लाया गया....
हिन्दी के प्रति योगदान माना जाएगा आपका...
अगर यह आप को थोडासा रिझा गया!

http://readerblogs।navbharattimes।indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/2-क-क-ल-ज-बन-गई-क-ल-न-उपन-य-स

Tuesday 13 March 2012

कोकिला!...जो बन गई क्लोन!

कोकिला... जो बन गई क्लोन!


...यह मेरा एक नया उपन्यास है !....मुझे अत्यंत खुशी हो रही है कि इसे नवभारत टाइम्स के सहयोग से क्रमश: प्रकाशित किया जा रहा है !....इंग्लिश साहित्य की महंगी किताबों के खरीदार भारत में बड़ी संख्या में मिल जाते है .....यहाँ तक कि मूलत: इंग्लिश में लिखी गई हिन्दी या अन्य भाषाओं में अनुवादित किताबों को भी लोग बाग़ सिर आँखों पर उठा लेते है ....लेकिन भारतीय भाषा के लेखकों को अपना साहित्य पाठकों के सामने रखने में अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है!....लेखक किताबों को महंगे दामों पर प्रकाशित तो करवा सकते है ...लेकिन बाजार में इनकी मांग बहुत कम होने की वजह से निराशा ही हाथ लगती है!....हर लेखक की दिली इच्छा यही होती है कि उसकी रचना जन जन तक पहुंचे!....याने कि पाठक बड़ी संख्या में मिले!.....


.....नवभारत टाइम्स जैसे हिन्दी के प्रसिद्द अखबार द्वारा ही यह संभव है कि पाठक बड़ी संख्या में उपलब्ध हो!....यहाँ मैं नवभारत टाइम्स ग्रुप और नवभारत टाइम्स के ब्लॉग सम्पादक श्री. विवेक कुमार जी की तहे दिल से आभारी हूँ!...मेरा उपन्यास आप नीचे दी गई लिंक पर क्लीक कर के पढ़ सकते है!.....



Sunday 12 February 2012

वेलेंटाइन डे ...आता है तो आने दो!

वेलेंटाइन डे को हमने अपनी नजर से देखा....देखा क्या, कई दशकों से देखते आ रहे है!...आप भी खुली आँखों से देखते आ रहे होंगे...आप ने भी मजे लिए होंगे...हम भी तो बस मजे ही ले रहे है!... और हाल ही में लिए हुए एक ताजा मजे को आपके साथ बाँट कर अपनी खुशी में इजाफा करने जा रहे है....देखिए तो इससे आपकी खुशी में भी इजाफा होता है कि नहीं!

हमने एक पोस्ट नवभारत टाइम्स के ब्लॉग पोस्ट पर डाला है....क्यों कि वह पोस्ट हमारा ही होने की वजह से उसे यहाँ भी देने की जरुरत महसूस कर रहे है....ज़रा देखिए तो हमारी कथा नायिका नताशा वेलेंटाइन डे कैसे मनाती आ रही है!

http://readerblogs।navbharattimes.indiatimes.com/mujhekuchhkehnahai/entry/स-थ-क-ई-भ-ह-मतलब-त-व-ल-ट-इन-ड-मन-न-स-ह

Monday 16 January 2012







‘Love, Adventure & Miracle’





एडवेंचर का तोहफा...एक गधा! (हास्यकथा)

तब मेरे पिताश्री के पास ‘मनी’ की अच्छी खासी कमी थी!...लेकिन बुद्धि का भण्डार उनके पास विपुल मात्रा में था...उस भण्डार में से 100 ग्राम जितना हिस्सा मुझे भी विरासत में मिला ही था....बताता हूँ कि उसका इस्तेमाल मैंने कैसे किया...लेकिन उससे पहले मेरी राम कहानी आप को गले उतारनी ही पड़ेगी!

...तो मेरे पिताश्री ने धन के अभाव में भी मुझे बड़ी फ़ीस वाले इंग्लिश मीडियम के ऐसे स्कूल में दाखिला दिलवाना चाहा जिसका नाम धनवान लोग भी बड़े अदब से लेते थे!...पिताश्री की तिकडम बाजी का तीर ऐसे चला कि एक एम्.एल.ए. को अपने नीचे की सीट खिसकती नजर आई और उसे बचाने के ऐवज में पिताश्री ने मेरा दाखिला उस बड़े नामधारी स्कूल में करवाने की पेशकश नेताजी के सामने धर दी!...फिर क्या था..फ़ौरन मोबाइल का उस नेताजी ने सदुपयोग किया और मै सीधा उस स्कूल की प्रथम कक्षा में लैंड कर गया!

...जी मैंने कम अंकों से ही सही...बारहवी तो पास कर ही ली!...तब तक मेरे पिताश्री पर लक्ष्मी माता की अति कृपा की बरसात हो ही गई थी ...और मै इसी वजह से नालायक होते हुए भी डोनेशन की लिफ्ट में चढ़कर इंजीनियरिंग कोलेज में भर्ती हो गया!

...मै इंजीनियर बन गया...लेकिन पिताश्री के ऊपर अचानक यमराज की भी कृपा हो गई और वे सीधा स्वर्ग सिधार गए...माताजी तो पहले ही उपर जा चुकी थी!...अब बाकी रह गया मै और मेरी विरासत में मिली कोई 100 ग्राम जितनी बुद्धि का भण्डार!



...मै नौकरी की तलाश में दिन गुजारता रहा...पिताश्री की जोड़ी हुई धनदौलत ऐयाशी में लुटाता रहा!...जब तिजोरी खाली हुई तो दोस्तों से कर्जा ले कर भी ऐयाशी से नाता जोड़ कर दिन गुजारता रहा मै....लेकिन फिर जब वे अपने पैसे वापस माँगने के लिए फोन करने लगे तो मैंने अपना मोबाइल एक भिखारी को दान में दे दिया और मुंह छिपाने के इरादे से जंगल की और चल पड़ा!

अब मेरा एडवेंचर का बचपन का शौक पूरा होने जा रहा था!...मेरे पास गले में लटकता हुआ एक कैमरा और हाथ में बन्दूक थी!...इतना तो साथ होना जरूरी था!...मै चलता गया: आगे बढ़ता गया कि मुझे शेर के दहाड़ने के आवाज सुनाई पडी!..मैंने पीछे मुड़कर देखा तो वह असली शेर था...मेरे उपर झपट्टा मारने की फिराक में था..लेकिन पेड पर चढ के बैठे हुए दूसरे शेर ने अचानक से उसके उपर ही झपट्टा मार कर उसे धर दबोचा!...शायद वह पेड वाला शेर पहले से मुझे निशाना बनाने के फिराक में था और यह पीछे वाला शेर न जाने कहाँ से बीच में टपक पड़ा!


...अब दोनों शेर आपस में मल्लयुद्ध करने लगे!..यह तय था कि जो जीतेगा उसका नाश्ता मुझे ही बनना था!...अब इस समय विरासत में मिली मेरी 100 ग्राम बुद्धि काम आई और मै उन दोनों शेरों को जंगल के अखाड़े में लड़ते हुए छोड़ कर वहाँ से भाग खडा हुआ...लेकिन थोड़ी दूरी पर ही सामने से आता हुआ एक तीसरा शेर मैंने देखा...अब मै उलटा घुम गया और वापस उन दो शेरो वाली जगह पर पहुँच गया..यहाँ अभी हारजीत का फैसला हुआ नहीं था; मल्लयुद्ध जारी था ....तीसरा शेर भी वही आ कर मेरे साथ ही खड़ा हो गया और मल्लयुद्ध देखने लगा!




...अब एक शेर हार मानने की मुद्रा में जमीन पर लेट गया और मुंह से जबान बाहर निकाल कर आँखे आसमान पर टिका दी !...मेरी खैर नहीं थी...जीतने वाला शेर मेरी तरफ तिरछी नज़रों से देख रहा था! ...कि मेरी 100 ग्राम बुद्धि ने फिर कमाल दिखाया..मुझे याद आया कि मेरे पास तो भरी हुई बन्दूक है...लेकिन मै यह भी जानता था कि जंगली जानवरों का शिकार करना कानूनन अपराध है...तो मैंने गोली तो चला दी लेकिन पुलिस वालों की तरह हवाई फायर किया!..और इस आवाज से डर कर कर.. जीता हुआ और हारा हुआ...दोनों शेर ऐसे भाग खड़े हुए जैसे गधे के सिर से सिंग!



....मेरे पास खड़ा शेर भी अब हरकत में आ गया लेकिन मै जंप मार कर उस की पीठ पर सवार हो गया...मेरे पास भरी हुई बन्दूक का सहारा था...डरने की कोई बात ही नहीं थी! खामखा मै अब तक डरे जा रहा था ...वह शेर भागता जा रहा था कि एक और...मतलब कि चौथा शेर पिछेसे आ गया...मेरे उपर झपट्टा मारने के लिए ही तो...!

...अब मै कुछ करता इससे पहले ही जिस पर मै बैठा हुआ था उस शेर ने जोर की दुलत्ती झाड दी...पीछे वाले शेर के मुंह पर ऐसी जा लगी कि...वह शेर लुढक कर एक गहरे गढ्ढे में गिर गया! मै भी जमीन पर गिर गया..लेकिन मैंने क्या देखा...

‘अरे!...दुलत्ती झाड़ने वाला यह तो शेर था ही नहीं!..यह तो शेर की खाल ओढ़े हुए एक गधा था...धत् गधे!...तेरी तो, ऐसी की तैसी...’



...अब वह गधा भाग रहा था और उसकी शेर वाली खाल बगल में दबाए मै भी उसके पीछे पीछे भाग रहा था!...ये क्या हुआ?..अब जंगल पीछे रह गया था और हम दोनों शहर में घुस चुके थे!...गधा अब रुक गया...मै भी रुक गया!...मै धीरे से गधे के पास गया और उसे शेर की खाल पहना दी..अब वह फिर से शेर दिखने लगा...मैंने उसकी कई फोटोएँ ली!...

......तब से यह गधा मेरे पास ही है और मै उसे शेर की खाल पहना कर सड़क पर मदारी का खेल लोगों को दिखा कर अच्छी कमाई कर रहा हूँ!...दोस्तों का उधार भी मैंने चुका दिया है!...उम्मीद है कि कुछ और पैसे कमा कर...और नए गधे खरीद कर...उन्हें ट्रेंड करूँगा और गधों की सर्कस कंपनी खोल लूंगा॥बड़ी कमाई करूँगा!...कही नौकरी करने की क्या जरुरत है?...और यह एडवेंचर भी क्या कम है?...जंगल में जाने की भी जरुरत नहीं है!




(फोटोएँ गूगल से ली गई है!)



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Monday 9 January 2012

एक अनोखी प्रेम कहानी!












एक अनोखी प्रेम कहानी ...इसमें






‘Love, Adventure & Miracle’ भी है!


मेरा नाम प्रिया चौधरी!..मै गुजरात के एक छोटे शहर की रहनेवाली हूं!...जब साइंस कोलेज में एड्मिशन लिया, तब मेरी उम्र कोई 17 साल की थी! यह कोलेज सह-शिक्षा समिती का था!...... तभी किसी सहेली ने बताया कि शहर के जाने-माने कार्डिओलोजिस्ट डॉ. जोशी का बेटा 'मयंक' भी इसी कॉलेज में एडमिशन ले रहा है!... मेरे अंदर 'मयंक' को देखने की उत्सुकता पैदा हो गई!..'मयंक' कितना प्यारा नाम!... लेकिन कुछ ही दिनों में पता चला कि मयंक ने तो अहमदाबाद के सेंट जेवियर्स कॉलेज में एड्मिशन ले लिया!... मेरी उसे देखने की उत्सुकता और बढ़ गई!... मैंने ठान ही ली कि एक बार ही सही... मयंक को एक नजर देख तो लूं!... यही से मेरी प्रेम कहानी शुरू हुई!

...मेरी कोशिश रंग लाई और मेरा किसी काम से अहमदाबाद के सेंट जेवियर्स कॉलेज में जाना तय हुआ!... वहां पूछ्ताछ करने पर मयंक के बारे में पता चल ही गया!... वह वहां बॉयज हॉस्टेल में रह रहा था!... वहां तक मैं जा पहुंची .. और हाय राम!..उसे दूर से ही देख लिया!... अब उससे बात करने को जी मचल उठा!... लेकिन बात बनी नहीं!...लेकिन पता नहीं क्यों और कैसे उसे भी मेरे बारे में पता चल ही गया कि एक लड़की उसके बारे में कुछ ज्यादा ही पूछताछ कर रही थी!...अब हुआ ऐसे कि वह भी शायद मुझे देखने के इरादे से ही....मेरे कॉलेज में आया! मुझसे आंखे चार हुई...लेकिन बात इससे आगे नहीं बढी!... मुझे मन की गहराई में उतरने पर ऐसा महसूस हो रहा था कि मयंक भी मेरे में गहरी रुचि ले रहा है... लेकिन अभिव्यक्ति का सही मौका न उसे मिल रहा है...न मुझे!

... मैंने मन ही मन हार मान ली... सोचा मनुष्य कितना कुछ चाहता है, उसे उस में से सबकुछ तो नहीं मिलता!....मैं उसे भुलाने की कोशिश में लगी रही!... मैंने बीएससी कर ली!... मयंक अब तक मेरे बहुत अंदर तक समा चुका था!.. वह कहां है...क्या करता है..कुछ पता न चला! ...हो सकता है वह अपने पिता की तरह डॉक्टर बन गया हो!

... मैं बडी हो चुकी थी..अब मेरे लिये लड्के देखे जाने लगे... और मेरी एंगेजमेंट ‘विश्वास’ से हो गई....यह लड़का इंजीनियर था और मेरे पापा के दोस्त का ही बेटा था! " ....लेकिन जीवन में कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है....शादी की तारीख भी तय हो गई..कार्ड भी छपने चले गए कि अचानक से खबर आई कि विश्वास ने नींद की गोलिया खा कर आत्महत्या कर ली!..आत्महत्या के कारण का पता चला नहीं था!


....मेरे जीवन पर विषाद के बादल छा गए!...मयंक तो पहले से ही मेरे दिल की धडकन बन चुका था...और उसी धडकन के सहारे मै जीवन संवार रही थी!...और यह हादसा!...मुझे लगा कि ईश्वर पर भरोसा करूँ...या न करूँ?



.....मैं मन ही मन कोशिश कर रही थी कि मेरे दिल की आवाज मयंक के कानों से टकराएं!...पहले मुझे भगवान के अस्तित्व पर हंमेशा शक बना रहता था लेकिन अब भगवान के सामने भी गिडगिडाना मैंने शुरु कर दिया!... मेरी उम्र तब लगभग 24 साल की थी!... मेरे माता-पिता ने मुझे समझाया कि कहीं नौकरी कर लूं..जिससे कि दुःख की तीव्रता कुछ कम हो सके!

...... मेरी पढ़ाई के अनुरुप मैंने बैंक की नौकरी के लिए आवेदन दिया!...तीन महीने बाद ही साक्षात्कार के लिए बुलावा आ गया!... मुझे साक्षात्कार के लिए वडोदरा जाना था!... पास ही छोटे शहर नडियाद में, मेरे चाचा-चाची रहते थे!..मेरे चाचाजी डॉक्टर थे!..मुझे न जाने क्यों अंदर से ऐसा लग रहा था कि मयंक मुझे यहाँ मिल जाएगा! !

...मयंक डॉक्टर नहीं बन पाया था!... वह एक जानी-मानी दवाई की कंपनी में रिप्रिझेंटेटिव्ह के तौर पर कार्यरत था!...अपने बिजनेस के सिलसिले में मेरे डॉक्टर चाचाजी से मिलने उनके यहां आया था!... मैंने उसे ड्रॉइंग-रुम में देखा तो भौंचक्की रह गई!.. लगा भगवान का अस्तित्व सही में है...वरना मैं यहां कैसे आती!... रसोई में चाय बनाने में व्यस्त अपनी चाची से मैंने थोड़े से शब्दों में अपनी एक तरफा प्रेम कहानी सुनाई !... सुन कर चाची भी हैरान रह गई...लेकिन चाची ने जल्दी जल्दी में ही एक फैसला ले लिया! वह तुरन्त मुझे साथ ले कर ड्राइंग-रुम में गई!..

... मेरी मयंक से आंखें चार हुई!... बातचीत की डोर चाची ने ही संभाली!.. बातों बातों में पता लगाया कि मयंक की अब तक शादी हुई नहीं है और वह अहमदाबाद ही में किराए पर फ्लैट ले कर रह रहा है!...यह सब जान कर मेरी बांछें खिल गई!... मयंक के चेहरे की मुस्कान देख कर मैंने अंदाजा लगाया कि वह भी इस तरह से अचानक मुझे सामने पा कर बहुत खुश है!.... मेरी उस समय मयंक से औपचारिक बातें ही हुई!

....मेरी चाची ने उसे मेरे बारे में बताते हुए कहा कि ..." प्रिया का बैक की नौकरी के लिए वैसे चयन हो चुका है...सिर्फ इंटरव्यू बाकी है!...दो दिन बाद सोमवार के दिन अहमदाबाद के एक बैंक में इंटरव्यू है!... प्रिया सुबह आठ बजे की बस से अहमदाबाद पहुंचेगी!"


....इस पर मयंक ने कहा " मैं बस स्टैंड पर प्रिया को रिसीव करने पहुंच जाउंगा!...इंटरव्यू के लिए बैक भी ले जाउंगा!... बैंक मैंने देखा हुआ है!"... यह सुन कर मुझे लगा कि अंधा एक आंख मांगता है तो भगवान कभी कभी दो भी दे देता है!... मेरे चाचाजी भी अचंभे में थे कि यह क्या हो रहा है!...बाद में उन्हें मैंने और चाची ने सबकुछ बताया.. वे भी मेरी और मयंक की मुलाकात से खुश थे!

... दो दिन बाद मैं अहमदाबाद पहुंची! ..मुझे रिसीव करने बस स्टैड पर मयंक आया हुआ था! उसके पास मोटरसाइकिल था!...मै अब उसके पीछे बैठ कर मानों हवा में उड़ रही थी!...सब कुछ एक स्वप्न की तरह घटित हुआ!...हम दोनों एक कॉफी-हाउस गए...इधर-उधर की बातें हुई...फिर मेरे इंटरव्यू के लिए बैंक गए... फिर एक साथ लंच किया और फिर मयंक मुझे अपने फ्लैट पर ले गया!... अब लगा कि मैं उसे अपने दिल की बात कहूं.. वह भी जरुर कहेगा!... उसके बाद के जीवन के सुनहरे पलों में मैं खो गई!...

...मयंक का छोटासा वन बेडरूम का फ़्लैट था...लेकिन यहाँ सभी सुविधाएं मौजूद थी!...मेरी नजर टेबल पर रखे हुए म्युझिक प्लेयर पर गई और मयंक ने तुरंत उसे चला दिया...गीत बजने लगा...
‘तेरी मेरी...मेरी तेरी प्रेम कहानी है नई...दो लफ्जों में ये बयाँ ना हो पाएं....”


"मयंक" मैंने साहस बटोरते हुए कहा!


"हाँ! प्रिया!...कहो!"


" तुम मानते हो कि मै तब से तुमसे प्यार करने लगी थी...जब सिर्फ तुम्हारा नाम सुना था...तुम्हे देखा भी नहीं था..."


"मानता हूँ।...क्यों कि मैंने भी तुम्हे देखा नहीं था लेकिन तुम मेरे सपने में कई बार आई थी...लेकिन संजोग से एक ही शहर में रहने कि वजह से मैंने तुम्हे देखा और तुमसे प्यार करने लगा ..."


" मै भी मानती हूँ कि ऐसा ही हुआ होगा!...लेकिन जानते हो गुजरे वक्त में मेरे साथ क्या हुआ?"


" जानता हूँ...सब जानता हूँ...तुम्हारे साथ क्या गुज़री है..."


"अब... जब कि हम दोनों ने अपने दिल के राज खोल दिए है ...इसका श्रेय इस म्युज़िक प्लेयर को जाता है...जिसने बेहिचक हमारे दिल की बात हमारे सामने रख दी!"


“यह म्युझिक प्लेयर मैंने नया खरीदा है!...पसंद आया?” मयंक मेरे नजदीक खड़ा था और पूछ रहा था....और मै चुपके से अपने पेट कर चूंटी काट कर तसल्ली कर रही थी कि यह कोई सपना नहीं हकीकत है!


...शायद यही भाव मेरे चेहरे पर भी झलक रहे थे...क्यों कि मयंक ने अब अलमारी से कैमरा निकाला और मुझ से कहा...


“ प्रिया!...तुम्हारे प्यारे से चेहरे के भाव देख कर मुझे लग रहा है कि मै इन्हें कैमरे में कैद कर लूं....क्या इजाजत है?”


“ मयंक!...क्या मेरा चेहरा देख कर बता सकते हो कि मै इस समय क्या सोच रही हूँ?”


“हाँ!...तुम एक साथ बहुत कुछ सोच रही हो...तुम सोच रही हो कि मै तो मयंक से प्यार करती हूँ...लेकिन मयंक भी करता है इसका पता तो अब चला !तुम सोच रही हो कि तुम्हारा इस तरह से मेरे घर पर आना एक साहसिक कदम है...है कि नहीं?....तुम सोच रही हो कि जो कुछ हम सोचते है उसका हकीकत बन कर सामने आ जाना एक चमत्कार ही तो है....तुम सोच रही हो कि...”


"मयंक बस भी करो!...तुम सच कह रहे हो...क्यों कि तुम्हारे मन में भी इस समय यही सोच मौजूद है!


....फिर मयंक ने मेरी कई तस्वीरें ली और मैंने भी मयंक की बहुत सी तस्वीरें ली ...यह सुन्दर कैमरा था...ब्लैक कलर का!...इसे हाथ से अलग करने का मन ही नहीं कर रहा था! ..मेरे मनोभाव को मयंक समझ गया...

“...चाहिए तुम्हे?...मयंक मेरे कान में फुसफुसाया...उसकी साँसों की गर्माहट मैंने अपने गाल पर महसूस की!

“....नहीं...अभी नहीं!”
“ ..समझ गया मै....”
....मेरे पास बैठा हुआ मयंक कुछ आगे कहने जा रहा था लेकिन उसके मोबाइल की मीठी ट्यून बज उठी और वह किसी से बात करने लगा!....शायद उसके ऑफिस के किसी कुलीग का फोन था!...मै देख रही थी मयंक का मोबाइल भी बड़ा प्यारा था!...


“ मैंने म्युझिक प्लेयर, कैमरा और मोबाइल...सभी ZAPstore.com पर ऑर्डर प्लेस करके ही खरीदे है!...सभी चीजें कितनी सुन्दर है नहीं?...”


....यह सब चीजे अगर सोना थी; ...तो मयंक का साथ तो सोने पर सुहागा था.....उसी दरमियान हम दोनों ने तय कर लिया कि हम जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाएंगे!



.....मेरी इस अनोखी प्रेम कहानी में प्रेम, साहस और चमत्कार..तीनों तत्व मौजूद है!



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Wednesday 4 January 2012

मेरे उपन्यास में अभिषेक बच्चन!



अभिषेक बच्चन को ध्यान में रख कर लिखी गई कहानी...

मेरा पहला उपन्यास ...' उनकी नजर है...हम पर'...11 अगस्त 2010 के रोज प्रकाशित हुआ था! अब तक इसकी बहुत से लेखकों द्वारा बहुतसे पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा की गई है!....सभी ने इसे सराहा है! ...मै निजी तौर पर यहाँ सभी का धन्यवाद करती हूँ!

....यह उपन्यास मंगलग्रह से धरती पर आने वाले परग्रहियों की कहानी समेटे हुए है!....अत: इसे विज्ञान कथा पर आधारित कहानी आप कह सकते है; ...लेकिन इसमें विज्ञान विषय के लिए जो अपरिहार्य सबूत चाहिए होते है...वे मौजूद नहीं है...तो इस कहानी को एक परिकथा या मनोरंजक कहानी के वर्ग में शामिल किया जा सकता है!

.....अब जग प्रसिद्ध उपन्यास ..'हैरी पोटर' की कहानी ही लीजिए!...इसमें जादू से प्रकट होने वाले प्रसंगों की भरमार है!...यह भी एक मनोरंजक कहानी है....परिकथा ही है!...हैरी पोटर' की फिल्मों का सिलसिला भी खूब चल पड़ा!... और भी इसी तरह की बहुत सी फिल्में... मैन इन ब्लैक जैसी ....चल पडी!.....इंगलिश फिल्मों का यह एक प्रमुख विषय रहा ,है जिसमें परग्रहियों का मतलब कि एलियंस का हमारी धरती पर आना हुआ है!...हिन्दी फिल्में भी इस विषय पर बहुत बड़ी संख्या में दर्शक जुटाने में कामियाब रही है!..राकेश रोशन निर्मित और रितिक रोशन द्वारा मुख्य भूमिका निभाई गई फिल्म 'कोई मिल गया...' हिट रही है और आज पांच साल बाद भी थिएटर पर दर्शकों की भीड़ इकठ्ठा करने में कामियाब है!...यह एलियंस का हमारी धरती पर आने की कहानी दर्शाती है!...फिल्म 'कृश...रजनीकांत की 'रोबोट' और शाहरुख खान की 'रा. वन' भी चमत्कारों के भरमार से युक्त,इसी वर्ग की फिल्में है!

...जब मैंने 'उनकी नजर...' की रचना की है , तब इस उपन्यास की कहानी के दो पात्र ..मंगलग्रह से हमारी धरती पर आए हुए दो वैज्ञानिक ' फैंगार' और ' चापेन' पर विशेष रूप से ध्यान दिया है!...जैसे जैसे मै कहानी लिखती गई ' फैंगार' को मैंने अभिषेक बच्चन के स्वरूप में देखना शुरू किया !...शायद अभिषेकजी की फिल्में ' रिफ्यूजी' और 'गुरु' में उनके द्वारा किए गए गंभीर लेकिन अपनी एक अलग और खास छाप छोडने वाले अभिनय को ले कर ऐसा हुआ होगा!...उनकी और भी कई फिल्मों में उनके अभिनय में यही खासियत पाई गई!...उपन्यास के इस पात्र में भी यही खासियत है!...अब फिल्मों का फ्लॉप होना या हिट होना और भी बहुत सी चीजों पर निर्भर रहता है!

....वैसे मैंने यह उपन्यास यह सोच कर तो लिखा नहीं है कि इस पर फिल्म या सीरियल बने!...सभी लेखक गुलशन नंदा या चेतन भगत तो बन नहीं सकते!...और फिर सायंस फिक्शन पर हिन्दी फिल्में बनती भी बहुत कम है...क्यों कि इस पर लागत बहुत बड़ी आती है!...

....खैर!...अगर इस उपन्यास पर फिल्म बनती है और अभिषेक बच्चन भी ' फैंगार' की भूमिका निभाते है....तो मै समझूंगी कि दुनियामें असंभव जैसा कुछ भी नहीं है!